संस्कारित हिंदी
हिंदी मीडिया हिंदी भाषा सीखने का सर्वश्रेष्ठ जरिया होना चाहिए। शायद बहुतों के लिए है भी। लेकिन अगर एक राष्ट्रीय अखबार के संपादकीय पृष्ठ पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में छपी भाषा अगर ऐसी हो (नीचे देखें) तो शायद उससे तो अपनी थकी हुई, रसहीन, घरेलू, व्याकरणवंचित हिंदी ही बेहतर है।
क्या आप अपने बच्चों को ऐसी संस्कारित हिंदी सिखाएंगे?
5 Comments:
बालेन्दु भाई,
देर से ही सही,आये तो सही
स्वागत है, हिन्दी चिट्ठाकारी में।
अब लगातार लिखते रहो, लेखिनी रूकनी नही चाहिये।
बालेन्दु जी, हिन्दी चिट्ठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है। कामना है कि आप ऐसे ही निरन्तर लिखते रहेंगे।
बालेन्दु जी,
स्वागत। मैंने देखा कि आप संबद्ध अख्बारों का नाम नहीं लिख रहे हैं। कोई खास वजह? मेरा अनुरोध है कि नाम ज़रूर लिखें।
ब्लॉग का विषय बहुत उम्दा है और मुझे आशा है कि आप निरन्तर अखबारों व अन्य मीडिया की खबर लेते रहेंगे।
बालेन्दुजी,
इंटरनेट पर हिंदी रसिक आवारागर्दों की प्रभासाक्षी के माध्यम से आपसे पुरानी पहचान रही है. आश्चर्य तो मुझे इस बात का है कि आप अब तक ब्लॉगगिरी से दूर कैसे रहे? खैर अब आप आ गये हैं तो आपकी छाप यहां भी पड़नी चाहिए.
धन्यवाद जीतू भाई, प्रतीक, विनय, शशि भाई आपको उत्साहवर्धन के लिए। अब तो चर्चालाप होता ही रहेगा। विनय भाई, अखबारों का नाम न लिखने की वजह यह है कि क्यों किसी को पूरे इंटरनेट के बीच शर्मिंदा किया जाए। अपना मकसद यह है भी नहीं। मकसद है सिर्फ आनंद लेना और आगाह करना। सेक्सपियर दादा कह ही गए हैं कि नाम में क्या रखा है। बाकी जैसी पंचों की मरजी।
शशि भाई, ब्लोगगिरी से पूरी तरह दूर तो नहीं था। अब तक पाठक के नाते जुड़ा हुआ था जो कहीं ज्यादा सुरक्षित भूमिका है। लेकिन विचारों का उद्वेलन रोके से कहां रुकता है, सो ओखली में सिर दे ही दिया।
प्रतीक भाई, लगातार लिखने की इच्छा और इरादा तो है, प्रयास जरूर रहेगा।
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