एक खबर जिसकी जरूरत नहीं थी
दैनिक हिंदुस्तान में एक साहित्यिक आयोजन की खबर छपी है। लिखते हैं- एक स्वर्गीय साहित्यकार (कौन ?) की पहली पुण्यतिथि पर उनकी एक किताब (कौनसी ?) का विमोचन समारोह जलपान से शुरू हुआ। एक साहित्य रसिक (कौन ?) ने जमकर भोग लगाया। पेट में तर माल पहुंचा तो कुर्सी पर बैठते ही झपकी ऐसी लगी कि पुस्तक विमोचन के बाद बगल में बैठे सज्जन (कौन ?) की कोहनी लगी तो नींद उचट गई। सहसा बोले- क्या विमोचन हो गया? जवाब में हां सुनने को मिला तो महोदय फिर लीन हो गए। पीछे बैठे एक सज्जन (कौन ?) ने चुटकी ली- छककर खाने के बाद यह तो होना ही था।
अपनी सामान्य समझ के हिसाब से मुझे तो नहीं लगता कि यह भी कोई खबर है। क्या हर समारोह में हिस्सा लेने वाला हर व्यक्ति इतना महत्वपूर्ण है कि उसके बैठने या सोने पर खबर लिख दी जाए? यह खबर पढ़कर आपके सामान्य या असामान्य ज्ञान में कितनी वृद्धि हुई मैं नहीं कह सकता लेकिन क्या आपका वक्त इतना फालतू है कि वह ऐसी खबरों पर जाया हो जिनमें घटना से संबंधित एक भी तथ्य देने की जरूरत नहीं समझी गई?
4 Comments:
अजीब है. पता नही क्या क्या छाप दिया जाता है.
इसे ख़बर को पढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि अगर लोग हिन्दी पत्रकारिता के स्तर को पानी पी-पी कर कोसते हैं, तो क्या गलत करते हैं।
FINE BLOG,I also want to write the blog in hindi but am unable to do so,can u give me some guide?
पहले अपनी अंग्रेज़ी सुधार लीजिए
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