इन हिंदी अखबारों की भाषा में हिंदी है कहां
नवभारत टाइम्स ने कुछ अच्छे और कई बुरे प्रयोग किए हैं। उनमें से एक है अखबार की भाषा के साथ खिलवाड़। आपको याद होगा कुछ साल पहले इस अखबार ने अपने शीर्षकों में अंग्रेजी का प्रयोग करने की परंपरा शुरू की थी। हालांकि जहां तक मैं समझता हूं, यह फैसला संपादकीय स्तर पर कम, मार्केटिंग के स्तर पर ज्यादा किया गया था। अखबार के शीर्षक कुछ इस तरह के होते थे-
- अमेरिका कश्मीर मुद्दे पर mediation नहीं करेगाः बुश
या- Inflation ने फिर पांच फीसदी का figure पार किया
खैर, नवभारत में तो इस तरह के प्रयोग कम हो गए हैं लेकिन दूसरे अखबारों ने (जो बड़े अखबारों का अंधानुकरण करने में कोई कसर नहीं छोड़ते), इसे अपना लिया है। इनमें से कुछ तो अपने लेखों और खबरों में इतनी अंग्रेजी (कहीं देवनागरी लिपि में तो कहीं रोमन में भी) का प्रयोग कर रहे हैं कि लगता है भाषा के भ्रष्ट होने की यही गति जारी रही तो कुछ साल में ये अखबार देवनागरी लिपि में छपे अंग्रेजी अखबार बन कर न रह जाएं। जागरण और भास्कर की अंग्रेजीकृत खबरों की चर्चा हम पहले कर चुके हैं। अब राष्ट्रीय सहारा, दैनिक हिंदुस्तान और पंजाब केसरी की बानगी पेश है-
5 Comments:
वैसे, ये एक ट्रू इंडियन लैंग्वेज बन रही है, जिसमें आपको भाषा ज्ञान की कतई आवश्यकता नहीं. न ग्रामर न हिज्जे!
और, इसे अपने तेलुगु तमिल भाई भी उसी आसानी से समझ सकेंगे जितने अपने बिहारी, उड़िया भाई.
मुन्नाभाई की भाषा. सही भारतीय भाषा ?
कहिए, कैसी रहेगी यह भाषा?
दो अंग्रेजी शब्दो को एक हिन्दी के शब्द से जोड़ना न हिन्दी भाषा हैं न अंग्रेजी और न ही ट्रू इंडियन लैंग्वेज. हिन्दी के अखबार हिन्दी में ही छपे तो अच्छा हैं, जिन्हे अंग्रेजी पढ़नी होगी वे अंग्रेजी का अखबार खरिद लेंगे.
यह हिंदी की साहित्यगिरी से भाईगिरी की यात्रा है।
मेरा विचार है कि यह अंग्रेज़ी प्रयोग करने की सोची समझी नीति के अलावा अंग्रेज़ी मसौदे के अनुवाद के कारण उपजी समस्यायें भी हैं। हिंग्लिश का प्रचलन युवा वर्ग में है ही, ज़ूम व वी जैसे चैनल पूर्णतः खिचड़ी भाषा के चैनल है और यह युवा वर्ग को आकर्षित करने में सफल भी हैं, तो अखबार भला क्यो पीछे रहते।
यह तो कुछ भी नहीं है। अब तो I-Next का प्रकाशन शुरू हो गया है। हिन्दी की दुर्दशा करने में हिन्दी का सबसे ज्यादा प्रसार वाला अखबार, दैनिक जागरण ही इसमें शामिल हो गया है।
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