...और अब बारी एक 'सर्वोच्च' साप्ताहिक की
कई अखबारों और चैनलों को अपने आपको नंबर वन और सर्वश्रेष्ठ के रूप में प्रचारित करते हुए देखा है। कभी समझ में नहीं आया कि कोई खुद ही अपने सर्वश्रेष्ठ होने का निर्णय और दावा कैसे कर सकता है? लेकिन लीजिए हाजिर है एक और भी मजेदार दावा। द सन्डे इंडियन पत्रिका ने अपने आपको नया दर्जा दिया है और वह है- देश के 'सर्वोच्च' समाचार साप्ताहिक का। क्या कोई बता सकता है कि सर्वोच्च साप्ताहिक क्या होता है? सर्वोच्च पर्वतमाला, सर्वोच्च पद, सर्वोच्च श्रेणी जैसे प्रयोग तो समझ में आते हैं लेकिन क्या कोई अखबार या पत्रिका भी सर्वोच्च या उच्चतम हो सकती है? यदि ऐसा है तो फिर कुछ निम्नतम, कुछ औसत, कुछ मध्य-स्तरीय आदि भी पत्र-पत्रिकाएं होंगी? वाकई बहुत नया प्रयोग है और बहुत ऊंचा भी (सिर के ऊपर से जो निकल गया)।
4 Comments:
LOL, Funny one.
सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली हो सकती है, सर्वोत्तम नहीं.
बाकि मीडिया जो करे कम है.
वो तो देखिये ख़ुद ही कहना पड़ेगा. दुनियाँ का मुंह देखें इससे अच्छा है ख़ुद ही घोषित कर डालें. इस मामले में आत्मनिर्भर रहना जरूरी है. वैसे भी ये चौधरी लोग हमेशा हट के सोचने वाले रहे हैं. अपने इंस्टीच्यूट का विज्ञापन भी इसी तरह से करते हैं. उनके अनुसार आई आई एम इनके इंस्टीच्यूट के सामने कुछ नहीं है. इसलिए अगर अपनी पत्रिका को सर्वोच्च कहते हैं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है.
Balenduji,
Kisi ne bahut thik farmaya hai-
Har ek ka Jahan me armaan nikal raha hai,
top en bhi chal rahi hain, juta bhi chal raha hai.
Ye angrejidaan log hindi me magazine nikaal kar turram khan ban ne ki koshish kar rahe hain.
prakash chandalia
kolkata
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