ऐसी हिंदी से तो अंग्रेजी ही भली थी
दैनिक भास्कर विज्ञापन एजेंसियों के लिए पुरस्कार शुरू कर रहा है- कृतिकार पुरस्कार। अपने अखबार के संस्करणों में उसने इसे काफी प्रचारित किया है,लेकिन भारत के सबसे तेज बढ़ने वाले अखबार की भाषा तो देखिए। भैया, हिंदी अखबारों में अंग्रेजी विज्ञापन छापने पर रोक थोड़े है। ऐसी 'हिंदी' भाषा को भला देवनागरी में छापने की कौनसी मजबूरी आन पड़ी थी? रोमन में ही छाप लेते!
