Wednesday, May 31, 2006

आत्मा को अदालत भेजने से काम नहीं चलेगा?

माफ कीजिएगा लगातार दूसरी बार समाचार एजेंसी की खबर पर टिप्पणी कर रहा हूं। यूनीवार्ता पर खबर आई है कि एक अदालत ने अभियुक्त को पेश होने का हुक्म तो दिया ही है, यह भी कहा है कि उसे सशरीर मौजूद होना पड़ेगा! चलिए, हमें पहली बार पता चला कि लोग बिना शरीर भी अदालती कार्यवाहियों में हिस्सा ले आते हैं। शायद अदालत को शक रहा होगा कि बंदा कहीं खुद आने की बजाए अपनी आत्मा को अदालत भेज दे और खुद मजे से घर बैठा किसी बबली टीवी चैनल पर खबरें देखता रहे। नहीं भाई नहीं, ऐसे नहीं चलेगा। शरीर साथ लाना पड़ेगा। जहां तक मुझे लगता है, वार्ता वाले बंदे ने "He has to be physically present in the courtroom" जैसे किसी वाक्य का अपने अंदाज में अनुवाद किया है। आप भी पढ़ें-

Monday, May 22, 2006

बचाओ! शेयर बाजार का सर्किट टूटा

यूनीवार्ता ने एक लाइन का यह फ्लैश देकर चौंका दिया कि शेयर बाजार के सर्किट टूटने से कारोबार एक घंटे के लिए रोकना पड़ा।


कोई आधे घंटे बाद यूनीवार्ता की वेबसाइट पर विस्तृत खबर देखने को मिली जिसमें भी यही लिखा था कि शेयर बाजार आज इतना ज्यादा गिर गया कि वहां की कम्प्यूटर प्रणाली ठप्प हो गई और कारोबार एक घंटे के लिए रुक गया। समझ नहीं आया कि शेयर भावों का कम्प्यूटर प्रणाली के ठप्प होने से भला क्या संबंध? क्या शेयर भावों के एक निश्चित दर से नीचे जाने पर कम्प्यूटर काम करने से इंकार कर देता है? हम तो यही समझते आए थे कि उसका काम महज डेटा की प्रोसेसिंग, भंडारण और प्रदर्शन करना है। लेकिन डेटा अगर मनमाफिक न हो तो वह हड़ताल भी कर सकता है, यह समझ से बाहर था।


कुछ देर बाद समझ में आया कि भाईलोगों ने अनुवाद की बड़ी भीषण गलती की है। शेयर बाजार में सर्किट ब्रेकर नामक टर्म का खूब इस्तेमाल होता है। स्टॉक एक्सचेंज यह देखते हैं कि किसी एक शेयर के भाव अचानक बहुत ज्यादा ऊपर या नीचे न चले जाएं और इसी मकसद से सर्किट ब्रेकर नामक व्यवस्था का इस्तेमाल किया जाता है। जैसे ही किसी छोटी कंपनी के शेयर के भाव 20 फीसदी गिर या चढ़ जाते हैं तो स्टॉक एक्सचेंज सर्किट ब्रेकर का प्रयोग कर उस शेयर में कारोबार रोक देता है। बड़ी कंपनियों के लिए यही दर दस या पांच फीसदी हो सकती है। इसी तरह जब पूरे स्टॉक एक्सचेंज सूचकांक में ही दस फीसदी से ज्यादा की गिरावट आ जाए तो भी सर्किट ब्रेकर का प्रयोग किया जाता है। आज, यानी 22 मई को यही हुआ। बीएसई सेन्सेक्स में 1112 अंकों की गिरावट आई और सर्किट ब्रेकर लागू कर कारोबार एक घंटे के लिए रोक दिया गया। मगर अपने अनुवादक पत्रकार बंधु को लगा कि बीएसई में कम्प्यूटरों की वायरिंग या सर्किटों में खराबी आ गई है जिससे मजबूरन कारोबार रुका है। व्यापार डेस्क संभालने वाले ये पत्रकार बंधु धन्य हैं।

सर्किट ब्रेकर पर परिभाषात्मक टिप्पणी यहां पढ़ें।

Friday, May 19, 2006

बीबीसी ने लाइफ बना दी

बीबीसी ने जो कह दिया वह पत्थर की लकीर है क्योंकि बीबीसी की खबर गलत नहीं हो सकती। दशकों से बीबीसी वाले यही कहते और हम यही मानते आए हैं। अब आपको बताते हैं बीबीसी वालों का कारनामा। एक टैक्सी ड्राइवर (या फिर डेटाबेस क्लीनिंग एक्सपर्ट, जैसा कि कुछ लोगों ने कहा है) गाय गोमा ने बीबीसी में एक नौकरी के लिए आवेदन किया। वह बेचारा रिशेप्शन पर बैठा अपनी नौकरी के इंटरव्यू का इंतजार कर रहा था तभी उसके लिए बुलावा आया। कुछ ही क्षणों में उसने अपने आपको बीबीसी न्यूज के स्टूडियो में लाइटों से घिरा पाया जहां उस पर एपल कॉर्प (बीटल्स) बनाम एपल कंप्यूटर्स के मुकदमे के फैसले संबंधी सवालों की बौछार कर दी गई। गाय गोमा को लगा कि शायद बीबीसी वाले नौकरी के लिए कुछ ज्यादा ही मुश्किल इंटरव्यू लेते हैं। (नीचे फोटो में ही देखिए बंदे की हालत खस्ता है)। खैर, वह तकनीकी विषयों पर जैसे-तैसे उल्टे-पुल्टे जवाब देता रहा, बिना यह जाने कि उसका यह इंटरव्यू बीबीसी नेटवर्क पर लाइव प्रसारित किया जा रहा है और स्क्रीन पर उसका नाम गाय क्यूनी बताया जा रहा है जो कि एक आईटी वेबसाइट न्यूजवायरलेस.नेट के संपादक हैं।


कुछ देर में जब समाचार प्रस्तोता को अहसास हुआ कि रिसर्च वाले किसी गलत बंदे को पकड़ लाए हैं तो उसने जैसे-तैसे हालात को संभाला और इंटरव्यू खत्म किया। हां, इंटरव्यू खत्म होते समय गाय गोमा के मन में यही बात होगी कि बेटा मारे गए। इंटरव्यू तो बड़ा कर्रा निकला। यहां नौकरी का कोई चांस नहीं।

उधर गाय क्यूनी साहब रिशेप्शन पर दूसरी जगह इंतजार करते रहे और अचानक उन्होंने स्क्रीन पर देखा कि उनके नाम से बीबीसी न्यूज में कोई और बंदा दनादन उल्टे-सीधे जवाब देते जा रहा है। क्यूनी साहब इस इंटरव्यू के लिए कई दिन से रिसर्च में जुटे थे मगर सब गुड़ गोबर हो गया। तो भाई लोगो, आगे से बीबीसी को दूसरे मीडिया से कम आंकने की गलती मत कीजिए।

आप गाय गोमा साहब का वह इंटरव्यू यहां देख सकते हैं।

(माफ करें, ऊपर वाले स्थान से बीबीसी ने इंटरव्यू का वीडियो हटवा दिया है। फिर भी, यह इस स्थान पर उपलब्ध है। हालांकि यहां वीडियो खुलने में वक्त काफी लगता है)।

और गाय क्यूनी साहब की व्यथा को यहां समझने की कोशिश कर सकते हैं।