Friday, December 29, 2006

2006 का सबसे रचनात्मक फोटो कैप्शन?

एक हिंदी अखबार में आज छपी इस तसवीर को देखिए और फिर उसका कैप्शन पढ़िए। क्या दोनों में किसी तरह का संबंध है? कोई बताए कि आखिर कैप्शन लिखने वाला कहना क्या चाहता है?

खबर ताइवान की शीर्षक थाईलैंड का

टाइम्स ऑफ इंडिया में खबर छपी है। शीर्षक है- थाईलैंड के भूकंप से भारतीय बीपीओ कंपनियों को झटका। पूरी खबर में थाईलैंड अगर कहीं है तो सिर्फ शीर्षक में। खबर तो पूरी ताइवान के बारे में है। इतना तो तय है कि शीर्षक बनाने वाले ने खबर पढ़ी नहीं है। हो सकता है बेंगलूर डेटलाइन को बैंकाक पढ़कर शीर्षक बनाया गया हो। आप भी देखिएः

Saturday, December 23, 2006

उद्घाटन क्या किया, जान से ही गए!

भारत सरकार का प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) मीडिया को प्रामाणिक सरकारी खबरें और फोटोग्राफ भेजता है। पीआईबी की वेबसाइट पर एक फोटोग्राफ का विवरण देखते हुए मैं चौंक पड़ा। फोटोग्राफ था उत्तरपूर्वी भारत में पहले पोस्टल फाइनेंस मार्ट के उद्घाटन का, जिसका उद्घाटन विभाग की सचिव ज्योत्सना डीश ने किया था। आप स्वयं देखें भारत सरकार के मीडिया विभाग ने इस कार्यक्रम का ब्यौरा देते हुए क्या अनर्थ कर डाला है।



यदि हटाई न गई हो तो मूल फोटो और कैप्शन आप यहां देख सकते हैं

ईश्वर ज्योत्सनाजी को लंबी उम्र दे।

Thursday, December 21, 2006

हिंदी साहित्य सभा की हिंदी, भई मान गए!

हिंदी साहित्य सभा और हिंदी हिंदुस्तान मिलकर स्पंदन-2006 नामक आयोजन कर रहे हैं। हिंदुस्तान में इस बारे में लंबा-चौड़ा विज्ञापन भी छपा है। जरा इस आयोजन की प्रतियोगिता-श्रेणियों पर नजर डालिए। डंब शेराड्स, एक्ट एंड रिएक्ट, मिमिक्री कॉम्पिटीशन वगैरह वगैरह...यकीन नहीं होता कि यह किसी हिंदीसेवी संस्था का आयोजन है जिसे हिंदी के नामी अखबार के साथ मिलकर आयोजित किया जा रहा है। हिंदी साहित्य सभा के विज्ञापन में देवनागरी जरूर है मगर हिंदी की हालत तो दयनीय है! चलिए हिंदी की दुर्दशा तो होती ही रहती है, कम से कम अंग्रेजी शब्दों को तो (देवनागरी में ही सही) शुद्धता से लिख लिया होता!

एक ही खबर दो-दो बार, ताकि मिस न करें आप

टाइम्स ऑफ इंडिया भले ही स्वयं को सर्वश्रेष्ठ और आदर्श करार दे मगर खबरें तो भारत के इस सबसे बड़े अंग्रेजी अखबार में भी रिपीट होती हैं। आज Being Indian नामक डॉक्यूमेंट्री को बीबीसी का पुरस्कार मिलने की खबर पेज अठारह पर भी छपी है और पेज अड़तीस पर भी। शायद इसलिए कि अगर पाठक एक पेज पर न पढ़ सके तो दूसरे पर पढ़ ले।

दांत कहां तुड़वा बैठे नेपाल नरेश?

भले ही आप इसे मेरी नासमझी मानें, मगर जब मैंने इस खबर के शीर्षक की पहली पंक्ति पढ़ी तो चौंक गया। लिखा था- नेपाल नरेश हुए दंतविहीन। मुझे चिंता हुई कि क्या पहले से ही संकटग्रस्त बेचारे नेपाल नरेश कहीं गिरकर अपने दांत तुड़वा बैठे? जब दूसरी पंक्ति पढ़ी तो चिंता और बढ़ी कि दंतविहीन होने के कारण उनकी शक्तियां भी छीन ली गई हैं। हो सकता है, नेपाल में दांत टूटने पर व्यक्ति को अक्षम मान लिया जाता हो और उससे सारे अधिकार छीन लिए जाते हों। बहरहाल, पूरी खबर पढ़ने पर पता चला कि नेपाल के अंतरिम संविधान में नरेश को राष्ट्राध्यक्ष की हैसियत से वंचित कर दिया गया है। अंग्रेजी की कापी में लिखा होगा कि नेपाल नरेश को toothless कर दिया गया है। संभवतः एजेंसी वाले साथियों ने उसका अनुवाद सीधे-सीधे 'दंतविहीन' कर दिया। सब जगह छप भी गया। अब अनुवाद करने वालों को कौन समझाए कि कुछ शब्द, कुछ मुहावरे हर भाषा के अपने होते हैं। उनका शब्दशः अनुवाद ठीक नहीं होता। समझ में नहीं आता कि अगर दंतविहीन के स्थान पर सीधे-सादे शक्तिहीनशब्द का प्रयोग किया जाता तो क्या दिक्कत थी?