आजतक ने संसद भवन में पहुंचाया और जेल भी
बलबीर सिंह राजपूत याद हैं आपको? शत्रुघ्न सिन्हा के हमशक्ल इन सज्जन को आजतक वालों ने खूब इस्तेमाल किया। आजतक की योजना के अनुसार वे आठ अगस्त 2003 को बड़े मजे से मोबाइल पर बात करते हुए संसद भवन की सुरक्षा भेदकर भीतर पहुंच गए थे। इस टीवी चैनल ने उस कार्यक्रम को खूब प्रचारित किया, जमकर टीआरपी बटोरी और काम निकलते ही बलबीर सिंह से पल्ला झाड़ लिया। बलबीर सिंह के खिलाफ बाकायदा मुकदमा दर्ज किया गया जो तीन साल से जारी है। हालत यहां तक पहुंच गई कि पिछले दिनों कोई जमानती न मिलने के कारण उन्हें जेल भिजवा दिया गया। जिस टीवी चैनल ने उन्हें अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया वह कम से कम उनकी जमानत देने जितनी सी नैतिकता तो दिखा ही सकता था?
नैतिकता? आप किस नैतिकता और संवेदना की बात कर रहे हैं? जो मीडिया बिहार में किसी को आत्महत्या के लिए उकसा सकता है और उसकी आत्महत्या का लाइव प्रसारण कर सकता है, जो मीडिया लोगों द्वारा यातना देकर चोरों को जान से मारे जाने की घटना का सीधा प्रसारण कर सकता है, जो किसी व्यक्ति को उसकी महिला रिश्तेदार द्वारा लगाए गए बलात्कार के झूठे आरोपों का सच की पुष्टि किए बिना प्रचार कर उसकी आत्महत्या का कारण बन सकता है, उसका नैतिकता से क्या अब भी कोई संबंध बचा रह गया है? और कानून? किसी की हत्या के मामले में जब हत्या की साजिश रचने वाला भाड़े के हत्यारों से अधिक दोषी माना जाता है तो बलबीर सिंह राजपूत के मामले में क्या टेलीविजन चैनल को वास्तविक दोषी नहीं माना जाना चाहिए? आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कानून इस मामले में आजतक के पत्रकारों को 2004 में ही दोषमुक्त करार दे चुका है। यानी कानून की नजर में दोषी वह है जो वास्तव में खुद शोषित है?