वाह मीडिया! हिंदी ब्लॉग Hindi Blog by Balendu Sharma Dadhich
दूसरों पर उंगली उठाने में सबसे आगे है मीडिया। सबकी नुक्ताचीनी में लगा मीडिया क्या स्वयं त्रुटिहीन है? आइए, इस हिंदी ब्लॉग के जरिए थोड़ी सी चुटकी लें, थोड़ी सी आत्मालोचना करें।
Friday, August 31, 2007
Thursday, August 30, 2007
पत्रकार, जो आवाजों को 'देख' सकते हैं
हम सब सामान्य व्यक्ति हैं जो आवाजों को सिर्फ 'सुन' सकते हैं। लेकिन कुछ अतिसुविधासम्पन्न और सक्षम लोग ऐसे भी हैं जो आवाजों को सुन भले ही न सकें, 'देख' जरूर लेते हैं। स्वाभाविक रूप से, ये लोग हमारे पत्रकार साथी ही हो सकते हैं। यूनीवार्ता की यह खबर देखिए, जिसमें साफ लिखा है कि रिपोर्टर महोदय लोकसभा में हुए हंगामे के दौरान आवाजों को सुनने में तो सफल नहीं हुए लेकिन उन्होंने आवाजें 'देख' जरूर लीं।
Thursday, August 16, 2007
दलेर मेहंदी को नहीं पहचानते इंडिया टुडे वाले!
इंडिया टुडे (हिंदी) के ताजा अंक (22 अगस्त) में दीपंकर गुप्ता का लेख छपा है- जोड़ते हैं जो जख्म। लेख बहुत अच्छा है। इसमें भारतीय सैनिकों का हौंसला बढ़ाते दलेर मेहंदी का फोटोग्राफ प्रकाशित किया गया है। लेकिन फोटो छापने वाले पत्रकार बंधु शायद भारत के सबसे चर्चित गायकों में से एक दलेर मेहंदी को पहचानते नहीं। यकीन नहीं होता? जरा फोटो का कैप्शन पढ़िए। न जाने किन 'लोगों' का जिक्र है इसमें।
Tuesday, August 14, 2007
मनमोहन सिंह हुए फरार: खबर वार्ता की!
देखिए समाचार एजेंसी वार्ता ने कितनी बड़ी चूक की है। उसने परमाणु करार के बारे में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और माकपा महासचिव प्रकाश करात की बैठक की जो खबर दी, उसका स्लग दिया- मनमोहन लीड फरार। हम बचपन में पढ़ा करते थे कि एक अक्षर के हेरफेर से खुदा जुदा हो जाता है। शंकर शकर बन जाता है और चिता चिंता। लेकिन यहां तो एक अक्षर की गलती ने ज्यादा ही गंभीर कारनामा कर दिखाया! आप भी देखिए।
Wednesday, August 08, 2007
एक फैशन शो ऐसा भी!
अखबारों में छपे चित्रों में होने वाली मजेदार गलतियों की श्रृंखला में एक और हाजिर है। दैनिक भास्कर में छपे इस समाचार को ही लीजिए। स्त्री स्वास्थ्य से संबंधित सरकारी नीतियों में खोट संबंधी खबर में बच्चे को नहलाती मां का चित्र लगाने का क्या औचित्य है, समझ नहीं आया। ऊपर से कैप्शन (चित्र विवरण) तो देखिए!
Monday, August 06, 2007
दुर्घटना से चौदह घंटे पहले ही दे दी खबर
पीटीआई-भाषा ने एक दुखद सड़क दुर्घटना की खबर दी है जिसमें दो लोगों की मृत्यु हो गई। वैसे तो यह एक रूटिन खबर है लेकिन भाषा के साथियों की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने (आज) दोपहर 2-45 बजे हुए इस हादसे की खबर चौदह घंटे पांच मिनट पहले ही, यानी (आज) रात 12-40 बजे ही दे दी। बताइए, अखबारी कामकाज में भला ऐसी कुशलता कहीं देखने को मिलती है आजकल?